बाबा गणिनाथ गाथा | Baba Ganinath Gatha

बाबा गणिनाथ गाथा | Baba Ganinath Gatha
बाबा गणिनाथ गाथा | Baba Ganinath Gatha

★★ #गनिनाथ - #गाथा ★★ बड़े संत रे पलावैया के ,जिनकी महिमा कहि न जाय । टप- टप -टप -टप घोड़ा दौड़े, चमकी ढाल और तलवार रण में घायल सेना नायक, कट कर लोटे शीश हजार भागा हार कर यवन कुमार ,लाज बचायी सुर बाला की किया शोषितों का उद्धार ,बड़े सन्त रे पलावैया के जिनकी महिमा कहि न जाय ................।

नैना मैना जोगा जोगिन,सबको बांध दिया वंसार रहा ना कोई जग में बैरी ,नही किया निर्बल पर वार निर्धन निर्बल साथ लगाया,जाति पाती का भेद न लाया रोग -शोक सब दूर भगाया,अंधे का भी किया गुहार बड़े सन्त रे पलावैया के ,गणिनाथ -गोविन्द हमार जिनकी महिमा कहि ना जाय ...............।

दे गई दूध क्वारी बछिया ,जग में शोर हुआ तत्काल बड़ी महिमा रे संतन की , मुठ्ठी चावल दूध कुमार कच्चा मिट्टी हांडी चढ़ाया ,खीर बनाया -भोज कराया खाया सारा नगर जवार,फिर भी बाकी बच गए घट में बड़े संत रे पलावैया के जिनकी महिमा कहि न जाय ..................।

योग तपोबल जड़ औषधि के,तन्त्र मन्त्र साधक विद्वान मनसा राम की कुटिया तर गयी , तर गए सारे वंश बहार सर्प दंश से बालक मर गये, मृत बालक को दिया जिया राजा गिरा पैर पर----हार, हर्षित हो जागीर लिख दी किया संत का जय जयकार, समय पड़ा तो रणभूमि में उठा लिया हाथों कृपाण, बड़े संत रे पलवैया के जिनकी महिमा कहि न जाय ------------------ ।

गंगा तट पर कल कल करती ,धारा गाये खूब मल्हार पीपल तरु के नीचे मचले , बच्चा मार रहा किलकार इतने में आ मनसा देखा, हर्षित हो लिया गोद उठाय सूखा पेड़ ज्यो हरिहर हो गये , हो गये वैसे मनसा राम बड़े सन्त रे पलवैया के जिनकी महिमा कहि न जाय ----------------।

केदली वन की बात न पूछो,दुश्मन की कोई जात न पूछो नतमस्तक हो गिरा चरण पर, लाल खान सेना सरताज बोला बाबा मुझे बना लो , अपने चरण का तू दास तड़पता लाल खान को, बाबा अपना जल दिया पिलाय लगा सोचने यवन फिरंगी, ऐसा संत कहा हम पाय जिसका दुश्मन हम बन बैठे , दिया उसी ने जान बचाय चट चरणों पर लिपट पड़ा वो, अब दुश्मनी अंत हो जाय बड़े संत रे पलवैया के, जिनकी महिमा कहि ना जाय........

(तर्ज आल्हा -ऊदल ) 💐रचयिता- डॉ0 गंगा प्र0 आजाद "सतमलपुरी " 💐

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